फेकना और लपेटना राजनीति की एक विलक्षण प्रतिभा है जिसने इसमें दक्षता प्राप्त कर ली वह चमक गया..अर्थात्

इस प्रतिभा से सुशोभित पुरूष ही राजनीति में खुद को जमा सकता है-गांवों में प्रधानी का चुनाव जोर कस रहा है प्रत्याशी अब अपने घरों से निकलकर गलियारों एवं चौबारों के चक्कर काटने लगे हैं---पिछले दिनों हम भी अपने गांव हो लिए सच कदर खुद को धुरंधर समझने वाले एक—से—एक प्रत्याशी भीगी बिल्ली के समान हाथ जोड़े मतदाताओं से मान मनव्वर करते नजर आए...यकीन नहीं हो रहा था कभी भी दुवा सलाम तक न करने वाले प्रत्याशी भी हाथ जोड़े मुंह बाए सामने नजर आए..मान—सम्मान के साथ—साथ खान—पान का समूचा प्रबंध दिखा..जिस भी प्रत्याशी से जो भी मुराद करों तुरंत पेशेखिदमत था..चहल पहल व स्वागत के उपरांत ऐसा प्रतीत हुआ मानों बसंत आ गया...पर अफसोस यह मौकापरस्त ये नेता अभी चुनाव के बाद अपने वादों को दारू की बोतल की तरह पी जाएंगे और फिर पतझड़ आ जाएगा-

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