समाजवादी संग्राम को रोक सकता है अर्जुन, फिर नेताजी हो सकते हैं मुलायम

netaji ke pair chhoota akhilesh ka beta arjun 


लखनऊ (Suyash Mishra): चुनावी बिगुल बजने के बाद भी समाजवादी संग्राम जारी है। चुनाव की तारीखें आ चुकी हैं। दूसरे दल जहां तैयारियों में जुट गए हैं वहीं प्रदेश का सबसे बड़ा राजनीतिक कुनबा आंतरिक कलह से उभरता नजर नहीं आ रहा। प्रदेश सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले कैबिनेट मंत्री आजम खान ने पिता—पुत्र के बीच मध्यस्था कर उन्हें एक करने की पुरजोर कोशिश की लेकिन वह नाकाम हो गए।


अर्जुन है आखिरी विकल्प

अब इस टूटते परिवार और बिखरते राजनीतिक कुनबे को बस एक ही डोर आपस में जोड़ सकती है वह है अखिलेश का बेटा 'अर्जुन'। पिता पुत्र की इस लड़ाई में पिता मुलायम ने बेटे अखिलेश को भले ही बार बार अपमानित किया हो, लेकिन अखिलेश ने हमेशा पिता का सम्मान किया है। ठीक इसी तरह के समाजवादी संस्कार सीएम अखिलेश के बेटे और मुलायम सिंह के पौत्र अर्जुन के हैं।


अखिलेश को छोड़नी पड़ी थी कुर्सी

अर्जुन ने हर जगह अपने दादा (मुलायम सिंह) का सम्मान किया है। नवंबर 2016 में एमलसी उदयवीर और आशू मलिक की चिट्ठी और एक प्रतिष्ठित अखबार में अखिलेश की संज्ञा औरंगजेब से करने की खबर को लेकर समाजवादी पार्टी कार्यालय में शुरू हुए विवाद के बाद पिता—पुत्र आमने सामने आ गए थे। सीएम अखिलेश को पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था। कुछ दिन बाद समाजवादी रजत जयंती समारोह में जब मुलायम सिंह मंच पर पहुंचे तो अखिलेश के बेटे ने उनके पैर छुए इसके बाद मुलायम ने उसे गले लगा लिया था।


रजत जयंती समारोह में एक साथ आ गया था परिवार

अखिलेश से आपसी मतभेद के बाद भी पौत्र के प्रति उनका स्नेह जग जाहिर हो गया था। हालांकि सीएम अखिलेश ने भी उनके पैर छुए थे। इसके बाद सभी गिले सिकवे खत्म हो गए थे। सपा परिवार में चल रही रार अचानक थम गई थी। एक मंच पर एक साथ पूरा परिवार खड़ा हो गया था। अखिलेश की रथ यात्रा में चाचा शिवपाल भी कंधा से कंधा मिलाकर खड़े दिखे तो वहीं नेताजी ने भी हरी झंडी दिखाकर रथ को रवाना किया।


बिना समझौते के खत्म हो सकता है पारिवारिक मतभेद

पार्टी के अंदरखाने से आ रही खबरों की मानें तो अब समाजवादी परिवार को एक करने के लिए तरकश मे सिर्फ एक ही तीर बचा है वह है 'अर्जुन'। मुलायम सिंह यादव बेटे अखिलेश से भले ही नाराज हो लेकिन पौत्र अर्जुन के लिए उनका स्नेह अब भी बरकरार है। अगर अर्जुन ने अपने दादा(मुलायम सिंह) और पिता अखिलेश को एकजुट करने की कोशिश की तो बिना समझौते के पारिवारिक मतभेद खत्म हो सकता है।


क्यों हो सकता है ऐसा?

सीएम अखिलेश बेहद संवेदनशील हैं। नवंबर में भी ठीक ऐसे ही हालात सपा में थे। उस समय सपा कार्यालय में बोलते हुए सीएम अखिलेश यादव अचानक भावुक हो गए थे और और रो पड़े थे। वह बार बार अपने पिता से पूछ रहे थे कि आखिर मेरा कसूर क्या है। साढ़े चार साल प्रदेश का नेतृत्व करने के बाद भी किसी भी विरोधी दल ने उनका विरोध नहीं किया लेकिन अब अपने लोग ही उनके दुश्मन हो गए हैंं। अखिलेश यादव ने कहा था ”मेरे पिता मेरे आदर्श हैं मैं उनके रहते नई पार्टी क्यों बनाऊं।” अगर मुलायम ने अर्जुन की बात मान ली तो अखिलेश अपने बेटे की बात कभी टाल नहीं सकते।


फिलहाल ये सिर्फ संभावनाएं हैं। अगर ऐसा होता है तो समाजवादी कुनबा फिर एक हो सकता है। बहरहाल वास्तविकता क्या होगी यह समय तय करेगा।

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