क्या ये कभी स्वयं अपने वृद्ध होने की बात स्वीकार करेंगे या फिर हम सब यह समझकर अब चुप हो जाये कि इन्हें अजरता  का वरदान प्राप्त है...तकरीबन 55 वर्ष पार कर चुके इन साहबान ने कभी भ खुद को बूढ़ा न कहने की कसम खा रखी है...पड़ोसी के दबाव का असर ही है कि इन्हें बूढ़ा कहने पर भी अब गुस्सा नहीं आता...हालांकि इनके अन्तर्मन मे जो पीड़ा हिलोरे लेती है उसका आभास लगाया जा सकता है...वृद्धा अवस्था को स्वीकारना यानी खुद को कमजोर मान लेना....जो कि शायद इन्हें मंजूर नहीं यही वजह है कि मंहगाई की माफिक बुढ़ापे की बढ़ती उम्र में भी ये जवानी का डंका बजा रहे हैं...खैर...अब कुछ भी हो पर इतना जरूर है कि उम्र के उच्चतम पावदान पर खड़े होकर भी यह बूड़ा बरगद अपनी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभा रहा है...काम करने का अंदाज ही इनके बुढ़ापे की तस्वीर को धुंधला कर रहा है...और हम युवाओं के लिए एक प्रेरणा है.............. जय हो 

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