अब अनमोल नहीं रही जुबान...

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Suyash Mishra
...हमारे दादा परदादा बताया करते थे कि पहले के जवाने में इंसान की बात पत्थर की लकीर हुआ करती थी। एक बार मुंह से निकल गई तो फिर उस पर विचार का प्रश्न ही नही उठता था। इतिहास गवाह है 'रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाय पर वचन न जायी।' पर आज 'नहीं रहे वो पीने वाले और नहीं रही वो मधुशाला।' 
मगर आज 

सियासी समुद्र में जुबान का कोई मोल नहीं होता। कायदे और बातें वक्त की नजाकत के साथ बदलती रहती हैं। सत्ता चाहत में चरित्रगत बदलाव कोई नई बात नहीं। इतिहास गवाह है सत्ता प्राप्ति के लिए कितनी बार उसूलों की तिलांजलि दे दी गई है और आज यह सब हो रहा है उत्तर प्रदेश की समाजवादी सियासत में।

देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने से साल 2012 में विकास पुरुष के रूप में यूपी को एक युवा नेता मिला तो बरसों से विकास की राह देख रहीं बंद हो रही आंखें भी उठी। लोगों में एक बार फिर भरोसा जगा कि अब विकास की राजनीति होगी। यूपी से दागी,भ्रष्टाचारियों, भू माफियाओं और दबंगों पर नकेल कसी जायेगी। उस समय समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल करके सबके चहेते अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया था। 

अखिलेश ने भी पिछले पांच सालों में विकास के अनेकों कार्य किये। खूब वाहवाही और लोकप्रियता भी बटोरी। लोगों के दिलों में बसने लगे। साल 2016 में समाजवादी पार्टी में सत्ता में अपनी हनक को लेकर शुरू हुई पारिवारिक जंग में अखिलेश के अपने ही उनके विरोधी हो गए। लेकिन सच्चाई और ईमानदारी की पटरी पर चलने वाले अखिलेश ने इन मुसीबतों के दौर में भी डट कर खड़े रही और कभी पीछे नहीं हटे। कौमी एकता दल के विलय का प्रस्ताव जब चाचा शिवपाल ने उनके सामने रखा तो वह प्रतिकार करते हुए बोले 'किसी भी कीमत पर समाजवादी पार्टी को गुंडों और माफियाओं की पार्टी नहीं बनने देंगे। 


एक वो अखिलेश का जज्बा था कि चाचा भतीजे की लड़ाई में अखिलेश की ईमानदारी को लेकर उन्हें खूब समर्थन मिला, लेकिन शुक्रवार (20 जनवरी 2017) को जब अखिलेश ने अपने मन के कैंडिडेट्स वाली पहली लिस्ट जारी की तो उसमें कौमी एकता दल के अध्यक्ष मुख्तार अंसारी के भाई अफजल अंसारी को भी टिकट दे दिया। जबकि इससे पहले वह इनके धुर विरोधी थे और इनके विरोध में वह नेताजी और शिवपाल से भिड़ गये थे।
अखिलेश के चरित्र में आकस्मिक परिवर्तन की वजह चाहे जो भी हो लेकिन उनके इस निर्णय ने प्रदेश की जनता का दिल तोड़ दिया है। 

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