वन इंडिया » हिन्दी » समाचार » देश शर्मनाक! महात्‍मा गांधी को पढ़ना नहीं चाहते लोग Written by: Suyash Mishra Published: Tuesday, October 1, 2013, 14:53 [IST] Use ← → keys to browse more stories शर्मनाक! महात्‍मा गांधी को पढ़ना नहीं चाहते लोग Ads by Google Flipkart- Deal of the Day A Fresh New Deal Every Day. Don't Miss. Shop Now! www.Flipkart.com/Deal_of_the_Day DHI Hair Loss Treatment Quality Hair Loss Treatment With No Pain, No scar.Guaranteed Result www.dhiindia.com/HairLossTreatment लखनऊ (सुयश मिश्रा)। देदी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल.... यह गीत आपको जरूर याद होगा और कल 2 अक्‍टूबर को गांधी जयंती के उपलक्ष्‍य में देश के कई शहरों में इसकी धुन सुनायी देगी। देश भर में राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित की जायेगी। स्‍कूलों में बच्‍चों को शिक्षा दी जायेगी कि वो महात्‍मा के बताये अहिंसा के रास्‍ते पर चलें। हर कोई बापू को याद करेगा। गांधीजी के रास्‍ते पर चलने की शिक्षा तो सब देते हैं, लेकिन कोई उन्‍हें पढ़ना नहीं चाहता है! जी हां बच्‍चों के स्‍कूली पाठ्यक्रमों से अगर महात्‍मा गांधी के चैप्‍टर हटा दिये जायें, तो शायद महात्‍मा की शिक्षाओं को ग्रहण करने का स्‍कोप ही खत्‍म हो जाये। शायद आपको यह सब पढ़कर हैरानी हो रही होगी। लेकिन यह सच है। इसका जीता जागदा उदाहरण लखनऊ विश्‍वविद्यालय है, जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विचारधाराओं पर एक पीजी डिप्‍लोमा कोर्स बड़े उत्‍साह के साथ शुरू किया गया, लेकिन कब बंद हो गया, किसी को पता तक नहीं चला। गांधीजी के रास्‍ते पर नहीं चल पाये छात्र लखनऊ विश्वविधालय में वर्ष 2008 में "पीजी डिप्‍लोमा इन गांधियन थॉट" शुरू किया गया। कोर्स में कुल 15 सीटें थीं, जो सभी भर गर्इं पर साल के अन्त तक केवल तीन बच्चे ही परीक्षा उत्तीर्ण कर पाये। बाकियों ने बीच में ही कोर्स छोड़ दिया। यह कोर्स तीन भागों में विभाजित था जिसमें थ्योरी के साथ-साथ प्रेकिटकल शामिल था। जिसमें गांधी जी का चिन्तन उनके बताये गये मार्गों पर चलना था। समाज सेवा करनी थी दूर गावों में जाकर गरीबों और मज़लूमों के साथ उठना-बैठना व उनकी समस्याओं को जानना पड़ता था। साथ ही शर्त थी कि कोर्स के दौरान आपको अहिंसा के रास्‍ते पर चलना होगा। नये जमाने के छात्रों के लिये यह सब इतना मुशिकल का कार्य था कि वे बीच में ही मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए। इस कोर्स को पूरा करने वाले डा. राम प्रसाद पाल इस समय लखनऊ विश्‍वविद्यालय में बतौर सब-एसोसिएट कार्यरत हैं। डा. पाल बताते हैं कि इसमें ज्यादातर एससी व एसटी के छात्र थे, जिनकी फीस शून्‍य थी और कई छात्रों ने तो दाखिला सिर्फ इस लालच में लिया था कि शायद आगे चलकर उन्हें छात्रवृतित मिल जाये या अध्‍ययन के लिये विदेश जाने का मौका मिल जाये। लेकिन यह सब इतना कठिन था कि विदेश जाना तो दूर ये छात्र गांधी के कदमों पर चलकर गांव तक नहीं जा सके। डा. पाल बताते हैं कि पहले साल बेहद खराब परफॉर्मेंस रही, उसके अगले साल तो एक भी छात्र दाखिला लेने नहीं आया। लिहाजा विश्‍वविद्यालय को कोर्स बंद करना पड़ा। डा. पाल बताते हैं कि विश्‍वविद्यालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी कोर्स को एक ही साल के अंदर बंद करना पड़ा हो। कोर्स के संस्‍थापक की आंखों में छलक आये आंसू हमने बात की गांधी जी की विचारधाराओं से प्रेरित प्रो मोरध्वज वर्मा से, जिन्होंने इस कोर्स को लॉन्‍च कराने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। आज इस कोर्स पर चर्चा हुई तो उनकी आंखें नम हो गईं और आंसू छलक आए। प्रो. वर्मा ने कहा, "इससे बड़ी विडम्बना इस देश के लिए और क्या हो सकती है। जहां एक तरफ विश्वविधालय अनुदान आयोग (यूजीसी) हर साल 12 लाख रुपये यूनिवर्सिटी व कालेजों को केवल इसलिए देता है कि वहां समाज के बड़े चिन्तकों के बारे में पढ़ाया जा सके, उनके व्यकितत्व उनकी विचारधाराओं को लोगों तक फैलाये। लेकिन अफसोस कि आज उन्‍हें कोई पढ़ना ही नहीं चाहता। प्रो. वर्मा ने कहा कि ऐसा नहीं है कि पूरे देश में ऐसा ही हाल है। महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रय विश्वविधालय वर्धा व पंजाब विश्वविधालय चन्दीगढ़ में गांधी जी के चरित्र से जुड़े कर्इ कोर्स चलाये जा रहे हैं और उनमें पीएचडी से लेकर डिलिट तक की पढ़ार्इ की जा रही है, लेकिन उत्‍तर प्रदेश के छात्र उन्‍हें पढ़ने में रुचि नहीं रखते। हर बड़ी खबर पर वनइंडिया की नज़र। हरदम अपडेट रहने के लिये जुड़ें हमसे फेसबुक और ट्विटर पर। Topics: mahatma gandhi, lucknow, education, lucknow university, uttar pradesh, gandhi jayanti, suyash mishra, महात्‍मा गांधी, लखनऊ, उत्‍तर प्रदेश, लखनऊ विश्‍वविद्यालय, शिक्षा, गांधी जयंती

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